नेह लुटाती चाँदनी, कर सोलह श्रृंगार..
धवल चारु चन्द्र किरणें, अमृत बरसा रहे आज !!
शीतल, उज्जवल रश्मियाँ, मंत्रमुग्ध कर रही महारास
- प्रत्यूष गौतम
No comments:
Post a Comment